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मानसरोवर--मुंशी प्रेमचंद जी


लांछन मुंशी प्रेम चंद

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नगर में इंदुमती-महिला-पाठशाला नाम का एक लड़कियों का हाईस्कूल था। हाल में मिस खुरशेद उसकी हेड मिस्ट्रेस होकर आयी थीं। शहर में महिलाओं का दूसरा क्लब न था। मिस खुरशेद एक दिन आश्रम में आयीं। ऐसी ऊँचे दर्जे की शिक्षा पायी हुई आश्रम में कोई देवी न थी। उनकी बड़ी आवभगत हुई। पहले ही दिन मालूम हो गया, मिस खुरशेद के आने से आश्रम में एक नये जीवन का संचार होगा। कुछ इस तरह दिल खोलकर हरेक से मिलीं, कुछ ऐसी दिलचस्प बातें कीं, कि सभी देवियाँ मुग्ध हो गयीं। गाने में चतुर थीं। व्याख्यान भी खूब देती थीं और अभिनय-कला में तो उन्होंने लंदन में नाम कमा लिया था। ऐसी सर्वगुण-संपन्न देवी का आना आश्रम का सौभाग्य था। गुलाबी गोरा रंग, कोमल गाल, मदभरी आँखें, नये फैशन के कटे हुए केश, एक-एक अंग साँचे में ढला हुआ; मादकता की इससे अच्छी प्रतिमा न बन सकती थी।
चलते समय मिस खुरशेद ने मिसेज टंडन को, जो आश्रम की प्रधान थीं, एकांत में बुलाकर पूछा- वह बुढ़िया कौन है?
जुगनू कई बार कमरे में आकर मिस खुरशेद को अन्वेषण की आँखों से देख चुकी थी, मानो कोई शहसवार किसी नयी घोड़ी को देख रहा हो।
मिसेज टंडन ने मुस्कराकर कहा- यहाँ ऊपर का काम करने के लिए नौकर है। कोई काम हो, तो बुलाऊँ?
मिस खुरशेद ने धन्यवाद देकर कहा- जी नहीं, कोई विशेष काम नहीं है। मुझे चालबाज मालूम होती है। यह भी देख रही हूँ, कि वह सेविका नहीं स्वामिनी है। मिसेज टंडन तो जुगनू से जली बैठी ही थीं, इनके वैधव्य को लांछित करने के लिए, वह उन्हें सदा-सोहागिन कहा करती थी। मिस खुरशेद से उसकी जितनी बुराई हो सकी, वह की और उससे सचेत रहने का आदेश दिया।
मिस खुरशेद ने गंभीर होकर कहा- तब तो भयंकर स्त्री है। तभी सब देवियाँ इससे काँपती हैं। आप इसे निकाल क्यों नहीं देतीं? ऐसी चुड़ैल को एक दिन न रखना चाहिए।
मिसेज टंडन ने अपनी मजबूरी बताई- निकाल कैसे दूँ; जिंदा रहना मुश्किल हो जाय। हमारा भाग्य उसकी मुट्ठी में है। आपको दो-चार दिन में उसके जौहर खुलेंगे। मैं तो डरती हूँ, कहीं आप भी उसके पंजे में न फँस जायें ! उसके सामने भूलकर भी किसी पुरुष से बातें न कीजिएगा। इसके गोयंदे न जाने कहाँ-कहाँ लगे हुए हैं। नौकर से मिलकर भेद यह ले, डाकिये से मिलकर चिट्ठियाँ यह देखे, लड़कों को फुसलाकर घर का हाल यह पूछे। इस राँड को खुफिया पुलिस में जाना चाहिए था। यहाँ न जाने क्यों आ मरी।
मिस खुरशेद चिंतित हो गयीं, मानो इस समस्या को हल करने की फिक्र में हों। एक क्षण बाद बोलीं- अच्छा मैं इसे ठीक करूँगी; अगर न निकाल दूँ, तो कहना।
मिसेज टंडन- निकाल देने ही से क्या होगा। उसकी जबान तो न बंद होगी। तब तो वह और भी निडर होकर कीचड़ फेंकेगी।
मिस खुरशेद ने निश्चिंत स्वर में कहा- मैं उसकी जबान भी बंद कर दूँगी बहन। आप देख लीजिएगा। टके की औरत, यहाँ बादशाहत कर रही है। मैं यह बर्दाश्त नहीं कर सकती।
वह चली गयी, तो मिसेज टंडन ने जुगनू को बुलाकर कहा- इस नयी मिस साहब को देख। यहाँ प्रिंसिपल हैं।
जुगनू ने द्वेष भरे हुए स्वर में कहा- आप देखें। मैं ऐसी सैकड़ों छोकरियाँ देख चुकी हूँ। आँखो का पानी जैसे मर गया हो।
मिसेज टंडन धीरे से बोलीं- तुम्हें कच्चा ही खा जायेंगी। उनसे डरती रहना। कह गयी हैं, मैं इसे ठीक करके छोडूँगी। मैंने सोचा, तुम्हें चेता दूँ। ऐसा न हो, उसके सामने कुछ ऐसी-वैसी बातें कह बैठो।
जुगनू ने मानो तलवार खींचकर कहा- मुझे चेताने का काम नहीं, उन्हें चेता दीजिएगा। यहाँ का आना न बंद कर दूँ, तो अपने बाप की नहीं। वह घूमकर दुनिया देख आयी हैं, तो यहाँ घर बैठे दुनिया देख चुकी हूँ।
मिसेज टंडन ने पीठ ठोंकी- मैंने समझा दिया भाई, आगे तुम जानो तुम्हारा काम जाने।
जुगनू- आप चुपचाप देखती जाइए। कैसा तिगनी का नाच नचाती हूँ। इसने अब तक ब्याह क्यों नहीं किया? उमिर तो तीस के लगभग होगी?
मिसेज टंडन ने रद्दा जमाया- कहती है, मैं शादी करना ही नहीं चाहती। किसी पुरुष के हाथ क्यों अपनी आजादी बेचूँ?
जुगनू ने आँखें नचाकर कहा- कोई पूछता ही न होगा। ऐसी बहुत-सी क्वाँरियाँ देख चुकी हूँ। सत्तर चूहे खाकर, बिल्ली चली हज्ज को !
और कई लौंडियाँ आ गयीं और बात का सिलसिला बंद हो गया।

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